Buland kesari ;- जालंधर बाईपास स्थित फल एवं सब्जी मंडी भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है। रोजाना करोड़ों की आढ़त सीधे जेबों में जा रही है और न कोई हिसाब है, न ही कोई जवाबदेही। इस पूरे घोटाले का केंद्र बना है मंडी सुपरवाइजर हरिराम, जो मंडी में आने वाले माल के रिकॉर्ड में हेराफेरी कर एक संगठित गड़बड़ी को अंजाम दे रहा है। जानकारी के अनुसार, हर दिन माल मंडी में पहुंचता तो हरिराम इनमें से करीब 30 फीसदी ट्रकों का माल रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं करता। इसका सीधा मतलब है कि उस माल की आढ़त ‘काली कमाई’ में तब्दील हो जाती है।
मंडी में माल आने के बाद उसकी एंट्री रजिस्टर या ऑनलाइन सिस्टम में दर्ज की जाती है। यही डाटा बाद में आढ़तियों और किसानों के लेन-देन का आधार बनता है लेकिन जब माल ही दर्ज नहीं होगा तो उस पर लगने वाली आढ़त का कोई ट्रैक नहीं रहेगा। माना जा रहा है कि अगर एक गाड़ी पर औसतन 1 लाख रुपए का फल-सब्ज़ी लोड हो तो 20-25 गाड़ियों को छुपाकर हर दिन लाखों की अवैध आढ़त हजम की जा रही है।
सूत्रों की मानें तो सब्जी मंडी के सभी सुपरवाइजरों की लाइफस्टाइल सरकारी वेतन से कहीं ज्यादा आलीशान है। उसके पास कई प्रॉपर्टी, महंगे वाहन और अन्य सुविधाएं हैं, जो उसकी आय के स्रोतों से मेल नहीं खातीं। यह खेल सिर्फ एक सुपरवाइजर तक सीमित नहीं है। मंडी में तैनात कई अन्य सुपरवाइजर भी इसी खेल में शामिल हैं। विपक्ष का आरोप है कि ‘आप’ सरकार इस पूरे नैटवर्क को राजनीतिक संरक्षण दे रही है। मंडियों में बैठे भ्रष्ट अधिकारी सत्ता की छत्रछाया में फल-फूल रहे हैं। सरकार की नीयत साफ होती तो अब तक सख्त विजिलैंस जांच हो चुकी होती और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती। इस पूरे सिस्टम का सीधा असर किसानों और आम जनता पर पड़ रहा है। किसान को उसके माल की सही कीमत नहीं मिलती और उपभोक्ताओं को महंगी दरों पर फल-सब्ज़ी खरीदनी पड़ती है।
और भी सुपरवाइजर होंगे एक-एक कर बेनकाब
हरिराम के खिलाफ उभर रहे घोटालों ने मंडी के पूरे सिस्टम को कटघरे में खड़ा कर दिया है लेकिन यह सिर्फ शुरूआत है। सूत्रों की मानें तो मंडी में तैनात अन्य सुपरवाइजरों की भी फाइलें तैयार हो रही हैं। जल्द ही बाकी सुपरवाइजरों को लेकर भी एक-एक कर बड़े खुलासे किए जाएंगे। इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि मंडी तंत्र में फैले भ्रष्टाचार की परतें धीरे-धीरे खुलेंगी और कई नामचीन चेहरे भी जांच के दायरे में आ सकते हैं।
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