Buland kesari;-भगवान श्रीकृष्ण के जन्म को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार हर साल भाद्रपद के कृष्ण पक्ष Shri Krishna Paksh की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। भागवत पुराण सहित श्रीकृष्ण के जन्म की कथा कई और पुराणों में भी मिलती है। भागवत पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की मध्य रात्रि में हुआ था। श्रीकृष्ण के भक्तों के मन में अक्सर यह सवाल आता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म आखिर आधी रात में ही क्यों हुआ था? आइए, जानते हैं इसका रहस्य।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस दिन बुधवार था। श्रीकृष्ण ने भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में जन्म लिया था। इसका कारण यह था कि श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे। चंद्रवंशी होने का अर्थ है कि कृष्ण जी के पूर्वज चंद्रदेव थे। जबकि बुध चंद्रमा के पुत्र माने जाते हैं, इसलिए श्रीकृष्ण ने चंद्रवंश में पुत्रवत जन्म लेने के लिए कृष्ण ने बुधवार का दिन चुना.
भागवत पुराण में लिखी जन्मकथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने रोहिणी नक्षत्र में जन्म लिया था। रोहिणी चंद्रदेव की प्रिय पत्नी और नक्षत्र भी हैं। वहीं, अष्टमी तिथि को माता शक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस कारण से भगवान श्रीकृष्ण को शक्ति स्वरूप और परब्रह्म कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण संपूर्ण ब्रह्मांड को स्वंय में समेटे हुए हैं।
पौराणिक कहानियों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने रात्रिकाल में इसलिए जन्म लिया था क्योंकि चंद्रमा रात्रि के समय संपूर्ण जगत को प्रकाशमान करता है। चंद्रवंशी कृष्ण ने अपने पूर्वज की उपस्थिति में धरती पर जन्म लेने का यह पहर चुना। इस कारण से जन्माष्टमी के व्रत को चांद निकलने के बाद और उनके दर्शन करने के बाद ही पूर्ण किया जाता है।
पौराणिक कहानियों के अनुसार चंद्रदेव की यह इच्छा थी कि विष्णु जी जब भी पृथ्वी पर अवतार लें, वे चंद्रदेव के प्रकाश में ही धरती पर आएं, जिससे कि चंद्रदेव प्रत्यक्ष रूप से उनके दर्शन कर सकें, इसलिए जब श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था, तो संपूर्ण वातावरण प्रकाशमान हो गया था। संपूर्ण वातावरण में सकारात्मकता छा गई थी।
द्वापर युग में मथुरा का राजा कंस था। असल में कंस एक अत्याचारी राजा था। उसने अपने पिता भोजवंशी राजा उग्रसेन को छल से राज सिहांसन से उतारकर खुद मथुरा पर राज करने लगा। कंस की एक बहन देवकी थी। उसने देवकी का विवाह यदुवंशी राजा वासुदेव के साथ कराई थी लेकिन जब कंस अपनी बहन और उनके पति को अपने राज्य में लेकर आ रहा था, तो आकाशवाणी हुई कि ‘जिस बहन का कंस इतने उत्साह के साथ विवाह उत्सव आयोजित कर रहा है। एक दिन उसी की 8वीं संतान कंस का वध करेगी।’ यह सुनकर कंस ने अपनी बहन देवकी और उनके पति वासुदेव को कारागार में डाल दिया। काल कोठरी में देवकी और वासुदेव जी की 7 संतानों को कंस ने निर्दयता से मार दिया। इसके बाद वासुदेव जी के स्वपन्न ने श्रीहरि ने आकर उन्हें कंस के काल यानी आठवीं संतान को बचाने का मार्ग बताया।
Disclaimer:Buland Kesari receives the above news from social media. We do not officially confirm any news. If anyone has an objection to any news or wants to put his side in any news, then he can contact us on +91-98880-00404.