Buland Kesari:-चवर तख्त के मालिक जगत जोत, सर्व-कला पूरब साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का आज पहला प्रकाश पर्व है, जिसे पूरी श्रद्धा और भावना के साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर मैं आपको यह भी जानना ज़रूरी है कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का संपादन कैसे हुआ और इस दिन का अनोखा इतिहास क्या है।
इतिहास के अनुसार सम्मत 1660 (1603 ई.) को गुरु अर्जन देव जी ने गुरुद्वारा श्री रामसर साहिब के स्थान पर संपादन का कार्य आरंभ किया और भाई गुरदास जी को लेखन सेवा का सम्मान प्राप्त हुआ। यह कार्य सम्मत 1661 (1604 ई.) को पूरा हुआ और श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रथम प्रकाश उसी वर्ष भादों सुदी एकम को सचखंड श्री हरिमन्दर साहिब श्री अमृतसर में हुआ।गुरु साहिब जी ने बाबा बुड्ढा जी को सेवा एवं देखरेख के लिए प्रथम मुख्य ग्रंथी नियुक्त किया। इसके बाद दसवें पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी ने तलवंडी साबो में नौवें पातशाह गुरु तेग बहादुर साहिब के काव्य छंदों को इनमें दर्जकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब को सम्पूर्ण किया। अपने अंतिम दिनों में श्री गुरु ग्रंथ साहिब को शब्द गुरु के रुप में सिखों के समक्ष ग्रंथ साहिब जी को गुरगद्दी प्रदान की। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में 6 गुरु साहिबों के अलावा 15 भगत, 4 गुरुसिख और 11 भट्ट साहिब 31 रागों में दर्ज हैं। इसके साथ ही छह गुरुओं सहित भगतों, भट्टों और महापुरखाओं के पवित्र श्लोक भी शामिल हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब 1469 से 1708 तक सिख गुरुओं द्वारा रचित और संग्रहित 1430 छंदों की एक व्यापक धार्मिक पुस्तक है।सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708) ने ज्योति जोत समाते समय श्री ग्रंथ साहिब को जागत जोत गुरू का दर्जा दिया था। गुरु ग्रंथ साहिब को गुरुमुखी लिपि में लिखा गया है और कई बोलियाँ – जैसे कि लैहंदी पंजाबी, ब्रज भाषा, खड़ी बोली, संस्कृत और फ़ारसी – भी संत बानी के रुप में दर्ज़ किया गया है।
आज श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पहला प्रकाश पर्व बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु श्री हरमंदिर साहिब में मत्था टेक रहे हैं। श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी के पहले प्रकाशोत्सव पर गुरुद्वारा श्री रामसर साहिब से सचखंड श्री दरबार साहिब तक नगर कीर्तन निकाला गया।
आज ही के दिन 1604 ई. में श्री गुरु ग्रंथ साहिब का पहली बार श्री हरमंदिर साहिब में प्रकाशन हुआ था। 1430 अंगों (पृष्ठों) वाले श्री गुरु ग्रंथ साहिब के पहले प्रकाश पर्व के अवसर पर गुरसिखों ने कीर्तन दीवान सजाया था और बाबा बुड्ढा ने गुरबाणी जाप शुरू किया। पहले पातशाह से लेकर छठे पातशाह तक अपना जीवन सिख धर्म की सेवा में समर्पित करने वाले बाबा बुड्ढा इस धार्मिक ग्रंथ के पहले लेखक बने।
आरंभ से समापन तक का इतिहास
सबसे पहले सिख पंथ के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी ने अकाल पुरख के अमर वचनों को लिखित के रूप में अपने पास लिखा। इसके बाद जब गुरु अंगद देव जी गुरगद्दी पर बैठे तो गुरु नानक देव जी ने यह पुस्तक गुरु अंगद देव जी को सौंप दी। गुरु नानक देव जी, गुरु अंगद देव जी, गुरु अमर दास जी, गुरु राम दास जी, गुरु अर्जन देव जी इन अमृत बचनों की संभाल करते रहे, जिससे आत्मसंतुष्टि और निरंकार के दर्शन होते हैं।
श्री गुरु अर्जन देव जी ने मानवता की पीड़ा को कम करने के लिए गुरु घर द्वारा सौंपी गई भगतों, भट्टों और सिखों की बाणी को एकत्र करने के बाद श्री ग्रंथ साहिब के रूप में ‘आदि ग्रंथ’ तैयार किया। 1430 अंकों वाले इस महान ग्रंथ में राग-मुक्त नित्तनेम की बाणियां दर्ज हैं, जिनको 1 से 13 अंगों तक क्रमांकित किया गया है। रागबंध छंदों की संख्या 14 से 1353 तक है। संख्या 1353 से 1430 में श्री गुरु तेग बहादुर जी, भगत कबीर जी, बाबा शेख फरीद और भट्ट साहिबों द्वारा लिखे गए श्लोक, स्वर, राग मालाएं शामिल हैं। अंततः दशम पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह ने 1708 ई. को ज्योति ज्योति
समाने के समय उन्होंने इस पवित्र ग्रंथ को प्रणाम किया तथा इस ग्रंथ की परिक्रमा की तथा इन्हें गुरु थाप दिया। इस प्रकार गुरु साहिब द्वारा सिख समुदाय को शाश्वत शब्द गुरु श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश प्रदान हुआ।
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