चंडीगढ़: पूर्व की सरकारों के लिए गए एक फैसले से पनपे हालात के बाद पंजाब की मौजूदा सरकार को मुश्किल हालात का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा दिए एक निर्देश से अचानक बनी सैंकड़ों करोड़ के वित्तीय बोझ की संभावना से निजात पाने के लिए पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का मन बना लिया है। सभी विभागों को एक प्रोफॉर्मा बनाकर भेजा गया है, जिसमें केस के फैसले से प्रभावित होने वाले मुलाजिमों का ब्यौरा मांगा गया है और साथ ही यह भी कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के उक्त फैसले को चैलेंज करने के लिए तैयार किए जा रहे केस में पैरवी की तैयारी करें।
वित्त विभाग ने राज्य सरकार के अधीन काम कर रहे सभी विभागों, बोर्डों, कॉर्पोरेशनों व अन्य संस्थाओं के प्रमुखों को पत्र भेजकर सुप्रीम कोर्ट में अपनाई जाने वाली विस्तृत रणनीति की जानकारी दी है। कहा गया है कि 15-1-15 के नोटिफिकेशन के खिलाफ पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट में मुलाजिमों द्वारा दाखिल की गई कई पटीशनों पर 16 फरवरी 2023 को दिए गए फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्पैशल लीव पटीशन (एस.एल.पी.) दायर करने के लिए संबंधित विभागों द्वारा शपथ-पत्र तैयार किए जाएं। वित्त विभाग द्वारा सभी विभागों को फाइल किए जाने वाले एफिडेविट्स का प्रारूप भी तैयार करके भेजा गया है ताकि कहीं भी कोई तकनीकी खामी न रहने पाए।
फरवरी माह के दौरान आए पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा उक्त नोटिफिकेशन को रद्द करने के फैसले के बाद सरकार, खासकर वित्त विभाग सकते में आ गया था।
असल में वर्ष 2015 के दौरान नोटिफिकेशन जारी होने के बाद अभी तक हजारों मुलाजिम भर्ती हो चुके थे और अदालत के आदेश मुताबिक मुलाजिमों को उनके प्रोबेशन पीरियड यानी औसतन 3 वर्ष के सभी भत्तों का भुगतान करने के लिए अंदाजन 12-15 हजार करोड़ का आकलन किया गया था। पहले से ही लाखों करोड़ रुपए के कर्ज से जूझ रही पंजाब की आर्थिकता के लिए यह बोझ उठा पाना नामुमकिन माना जा रहा था, जिसकी वजह से राज्य सरकार ने उक्त फैसले को चैलेंज करने की तरफ कदम बढ़ाया है।
क्लर्क से लेकर डॉक्टर तक, सभी को सिर्फ बेसिक पे
नोटिफिकेशन का असर यह है कि रा’य सरकार के अधीन भर्ती होने वाले क्लर्क-स्टैनोग्राफर से लेकर डॉक्टर तक सभी को प्रोबेशन पीरियड के दौरान सिर्फ बेसिक पे ही अदा की जाती है। यही कारण था कि काफी लंबे समय तक पंजाब के सेहत विभाग को डॉक्टरों की भर्ती के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिलते थे क्योंकि कोई भी डॉक्टर 15,500 रुपए प्रति महीना के वेतन पर लगने को तैयार नहीं होता था। बाद में इस समस्या से निजात पाने के लिए एम.बी.बी.एस. डॉक्टर व स्पैशलिस्ट डॉक्टर्स की नियुक्ति के लिए विशेष प्रावधान करके उन्हें इस नोटिफिकेशन से छूट दी गई। हालांकि इस समय अवधि के दौरान भर्ती होने वाले क्लास-वन अधिकारियों द्वारा लंबे समय तक छूट देने की मांग की जाती रही लेकिन किसी भी सरकार ने अन्य किसी वर्ग को इस नोटिफिकेशन के प्रावधानों से छूट नहीं दी।
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