जालंधर लोकसभा सीट पर होने वाले उप चुनाव के दौरान भले ही सभी पार्टियों द्वारा अपनी जीत का दावा किया जा रहा है, लेकिन सुखबीर बादल के सामने मुख्य रूप से भाजपा से आगे निकलने की चुनौती है। यहां बताना उचित होगा कि अकाली दल द्वारा भाजपा से अलग होकर विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद पंजाब में दूसरा लोकसभा उप चुनाव होने जा रहा है।
जहां तक संगरूर लोकसभा सीट पर हुए उप चुनाव के नतीजों की बात करें तो बंदी सिखों की रिहाई के मुद्दे पर बलवंत सिंह राजोआना की बहन को टिकट देने के बावजूद अकाली दल 5वें स्थान पर आया था। इन चुनाव में अकाली दल की तरह ही पंथक एजेंडे पर चुनाव लड़ने वाले सिमरनजीत मान को जीत हासिल हुई थी तो आप व कांग्रेस के बाद भाजपा चौथे स्थान पर आई थी। अब जालंधर लोकसभा उप चुनाव के दौरान अकाली दल व भाजपा फिर अलग अलग तौर पर लड़ रहे हैं, जहां सुखबीर बादल के सामने अपने सियासी वज़ूद को बरकरार रखने के लिए भाजपा से आगे निकलने की चुनौती है।
जिसके मद्देनजर उन्होंने पवन कुमार टीनु, सरवन सिंह फिल्लौर, पूर्व विधायक बलदेव खेहरा को छोड़कर बसपा की बेकग्राउंड वाले मौजूदा विधायक सुखविंदर सुकखी पर दाव लगाया गया है, जिसके मुकाबले भाजपा द्वारा अकाली दल के पूर्व विधायक इंद्र इकबाल अटवाल को उम्मीदवार बनाया गया है और भाजपा की लीडरशिप की तरह अकाली दल के कई पुराने नेता उसके साथ पूरा जोर लगा रहे हैं। इस दौर में भाजपा को मिल रहे हिन्दू वर्ग के समर्थन के सामने अकाली दल की पोजीशन का दारोमदार बसपा के वोट बैंक पर टिका हुआ है, जिसका जालंधर खासकर दोआबा में काफी आधार है।
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